"यूँ तो लफ़्ज हजारों हैं ज़बाँ को बादस्तूर बयाँ करने के वास्ते,
लेकिन हिसाब शायरी का अच्छा है शायर की बदौलत.."
1. जो मुस्कुरा न सकोगे नन्हें चेहरे देखकर यतीमख़ानों में,
क्या ही रंग लाएँगी दुआएँ रमज़ानों में..
2. ज़िंदगी क्या है?
कहीं किसी अंजुमने-मय में एक जाम का छलक जाना
और कहीं किसी मधुशाला में घूँट-घूँट को तरस जाना..
3. इतराती है जो इस शहर में फैली तमाम रौशनी
हैरत है,
चिराग तले अँधेरा जिस शिद्दत से कायम है..
4. बस शायराना न कह दो उस शायरी को,
जिसे शायर ने ज़ख़्मों को कुरेद कर उकेरा है..
~सृष्टि
~सृष्टि
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