मेरी आँखों का चुराकर पानी,
क्यों इंतज़ार करे सावन का तू?
रिसेगा जब मेरे छालों से ख़ून,
तेरे हिस्से में बारिश तो आएगी ही..
वो जो मेरे ख़्वाबों का बादल उड़ चला यहाँ से,
बूँदें उसकी तेरा आशियाना भिगाएँगी ही..
न कुछ कह देना उसे,
चुपचाप बरस लेने देना
वो ख़ामोश फिर गुज़र लेगा ।
आएगा ज़रा सुकून मुझे,
मेरा कुछ तो,
तेरे करीब ठहर लेगा ।
यूँ तो दगा कर नींद इन आँखों से,
जाकर तुझे सुलाएगी ही..
वो जो छिन गयी रौनक मुझसे,
तेरी राहों को गुलज़ार बनाएगी ही..
न ठिठक जाना वहाँ तुम,
मुझे याद भी न कर लेना
चैन होगा मुझे यहाँ,
कोई आवाज़ मुझे बुलाएगी नहीं..
जो रूख़सत न हो पायी तेरी मोहब्बत,
मुझे रातों में शायर बनाएगी ही..
~सृष्टि
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