Saturday, 2 December 2017

कुरबत-ए-सिफ़र-5

1. अजब है मौसम इश्क का भी,
    ठिठुरते को ठंड मिली और प्यासे को बरसात नहीं..

2. क्यों हर सह़र पूछता है ज़माना मेरा मिज़ाज?
    रातों में मैंने ही अपने आँसू पोंछे हैं..

3. काश़ कि तुझ पर ख़त्म हो ये सफ़र आख़िरी हो जाए
    न हो तू मयस्सर,
   तो ये सह़र आख़िरी हो जाए
   काश़ कि रूक जाए,
   धड़कन भी, कलम भी
   और ये गज़ल आख़िरी हो जाए..

4. मेरी जिंदगी हुई एक गीला कागज़,
    कोई लिख न सके, जला भी न सके..

No comments:

Post a Comment

Most popular post