गम़गीन क्यों रहें हम?
हमारा ख़्वाब क्या था, एक तारा ही तो था..
टूटना ही था, टूट गया।
तुम्हें खुशी है दुआ कुबूल हुई तुम्हारी,
काश़ कि इत्तला होती,
जिस तारे की कुर्बानी ने बख़्शी ये इनायत,
वो तारा, वो ख़्वाब, हमारा ही तो था।
यही तो एक रंज़ है कि घड़ियाँ रूकी नहीं,
काश़ कि रूक जातीं, तो जी भरकर निहार लेते तुम्हें।
न जाने इतनी-सी तमन्ना तुम्हें,
नागवार क्यों गुज़र गयी..
खै़र, तुमसे क्या शिकवा,
यहाँ जो भी था हमारे हक़ का,
वो सब, वो सब तुम्हारा ही तो था।
अब तो सब लुट गया, पर हाँ,
'सब' मिल गया है..
क्योंकि तुम, बस तुम रह गए हो।
जो वक्त-बेवक्त इस बेरंग ज़मीं पर,
होली इश़्क की खेल जाते हो।
काश़ गौर फ़रमाते,
होली का वो लाल रंग,
वो रंग, वो खून, हमारा ही तो था।
सोचते हैं कि रेत होता ये दिल हमारा,
हर याद की तुम्हारी याद भी,
वक्त के तूफ़ाँ में मिटा जाती..
बहुत देर हो गई राह में तुम्हारी,
ये दिल पत्थर हो गया अब।
ख़रोंच भी लग जाए,
तो ताउम्र निशाँ मिटा न सकोगे..
पर अब फ़िक्र नहीं, कोई गिला नहीं,
क्योंकि जिसने दिए ये ज़ख्म सभी,
वो हर कुछ, हर कुछ तुम्हारा ही तो था।
कभी याद कर लेना हमें ढलती शामों में,
शायद सुबह हमारी ज़रा उजली हो जाएगी।
या बस अपने होठों से,
नाम हमारा पढ़ लेना..
कभी पलटकर देखना,
कौन झुका है सजदे में,
या अक्सर हमारे किस्सों में,
ज़िक्र अपना सुन लेना..
जब भी अंधेरा होगा राहों में तुम्हारी,
हम दिल जला कर भी रौशनी करेंगे।
बस तुम तकल्लुफ़ न करना इस बात पर,
कि वो अक़्स, वो अक़्स हमारा ही तो था..
हमारा ख़्वाब क्या था, एक तारा ही तो था..
टूटना ही था, टूट गया।
तुम्हें खुशी है दुआ कुबूल हुई तुम्हारी,
काश़ कि इत्तला होती,
जिस तारे की कुर्बानी ने बख़्शी ये इनायत,
वो तारा, वो ख़्वाब, हमारा ही तो था।
यही तो एक रंज़ है कि घड़ियाँ रूकी नहीं,
काश़ कि रूक जातीं, तो जी भरकर निहार लेते तुम्हें।
न जाने इतनी-सी तमन्ना तुम्हें,
नागवार क्यों गुज़र गयी..
खै़र, तुमसे क्या शिकवा,
यहाँ जो भी था हमारे हक़ का,
वो सब, वो सब तुम्हारा ही तो था।
अब तो सब लुट गया, पर हाँ,
'सब' मिल गया है..
क्योंकि तुम, बस तुम रह गए हो।
जो वक्त-बेवक्त इस बेरंग ज़मीं पर,
होली इश़्क की खेल जाते हो।
काश़ गौर फ़रमाते,
होली का वो लाल रंग,
वो रंग, वो खून, हमारा ही तो था।
सोचते हैं कि रेत होता ये दिल हमारा,
हर याद की तुम्हारी याद भी,
वक्त के तूफ़ाँ में मिटा जाती..
बहुत देर हो गई राह में तुम्हारी,
ये दिल पत्थर हो गया अब।
ख़रोंच भी लग जाए,
तो ताउम्र निशाँ मिटा न सकोगे..
पर अब फ़िक्र नहीं, कोई गिला नहीं,
क्योंकि जिसने दिए ये ज़ख्म सभी,
वो हर कुछ, हर कुछ तुम्हारा ही तो था।
कभी याद कर लेना हमें ढलती शामों में,
शायद सुबह हमारी ज़रा उजली हो जाएगी।
या बस अपने होठों से,
नाम हमारा पढ़ लेना..
कभी पलटकर देखना,
कौन झुका है सजदे में,
या अक्सर हमारे किस्सों में,
ज़िक्र अपना सुन लेना..
जब भी अंधेरा होगा राहों में तुम्हारी,
हम दिल जला कर भी रौशनी करेंगे।
बस तुम तकल्लुफ़ न करना इस बात पर,
कि वो अक़्स, वो अक़्स हमारा ही तो था..