नंगे पैरों में जलते छाले,
सबको कहाँ मयस्सर हो पाते हैं।
खून के ये रंग, हर कूची में नहीं सिमट पाते हैं।
जिंदगी को आयाम जिंदगी नहीं, सफ़र के लोग कभी दे जाते हैं।
रुलाई में लिपटे संगीत को कितनी आसानी से अनसुना कर जाते हैं,
राह में आँखें खोलकर चलते भी, हर कदम पर ठोकर खाते हैं,
प्यासे बैठे एक बच्चे की तड़प, महसूस नहीं कर पाते हैं।
हर इंसान कोसता है उसे यहाँ, बदनसीबों की तादाद बहुत ज़्यादा है,
मैं तो चाहूँ हर इंसान पूछे उससे, तू क्यों इस मेहरबानी पर आमादा है।
पर न वो सवाल पूछते हैं, न आईना देख पाते हैं।
खूबसूरती को बस चंद चेहरों में ढूंढते रह जाते हैं,
सबको कहाँ मयस्सर हो पाते हैं।
खून के ये रंग, हर कूची में नहीं सिमट पाते हैं।
जिंदगी को आयाम जिंदगी नहीं, सफ़र के लोग कभी दे जाते हैं।
रुलाई में लिपटे संगीत को कितनी आसानी से अनसुना कर जाते हैं,
राह में आँखें खोलकर चलते भी, हर कदम पर ठोकर खाते हैं,
प्यासे बैठे एक बच्चे की तड़प, महसूस नहीं कर पाते हैं।
हर इंसान कोसता है उसे यहाँ, बदनसीबों की तादाद बहुत ज़्यादा है,
मैं तो चाहूँ हर इंसान पूछे उससे, तू क्यों इस मेहरबानी पर आमादा है।
पर न वो सवाल पूछते हैं, न आईना देख पाते हैं।
खूबसूरती को बस चंद चेहरों में ढूंढते रह जाते हैं,
वो क्या जाने कि परिंदे भी, हर घर में घोंसले नहीं बनाते हैं।
खुशनसीब होते हैं वो मल्लाह, जो समंदर के तूफ़ान देख पाते हैं,
खुले जिस्म पर कोड़े खाने का दर्द नसीब वाले भी नसीब से पाते हैं।
'जिंदा तो वो होते हैं, जो ज़माने के लिए तालीम बन जाते हैं।'
खुशनसीब होते हैं वो मल्लाह, जो समंदर के तूफ़ान देख पाते हैं,
खुले जिस्म पर कोड़े खाने का दर्द नसीब वाले भी नसीब से पाते हैं।
'जिंदा तो वो होते हैं, जो ज़माने के लिए तालीम बन जाते हैं।'
~सृष्टि
loved it :) keep up this amazing writing, looking forward for more of your writings :)
ReplyDeleteThank you so much. And yeah, you'll be reading more of such poetries soon enough. :)
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