Friday, 22 September 2017

रात

ख़ामोश वो रात भयानक है,
जब चुपचाप गिरती बारिश में
कुछ आँसू टूटकर मिल जाएँ,
जब टिम-टिम वो तारे ऊपर
एक-एक कर बुझ जाएँ ।
सन्नाटे को चीरकर,
कोई आवाज़ पहचानी-सी
कानों में शीशे के जैसे पिघल जाए
जब यादों के जंगल में पुकारे कोई,
और राही अनसुना कर बढ़ जाए ।
भयानक है वो रात,
जो अब भी ख़ामोश है
जो ठंडे हुए जिस्मों को,
रोआँ-रोआँ सहलाती है
और उठती-गिरती पलकों में
बूँदें बनकर जम जाती है
इस अँधेरे में चमकने की तो,
सूरज की भी ताब नहीं ।
जब एक हँसी के बदले में
सौ मौतें कोई मर जाए
है ये रात ख़ामोश,
और अब भी वैसी ही
भयानक!
जो साथ अपने मोहब्बत का,
ज़हर लिए फ़िरती है
और हर गुज़रते दिल को
छलनी-छलनी करती है
इस बेदर्द को, दर्द देकर न मिला चैन,
अब मेरे ही आशियाने पर
सुबहो-शाम ढलती है
देख़ती है मुझे बिलख़ता,
मगर उफ़ कम्बख़्त, उफ़ तक न करती है ।
जलाती है मुझे, हर किसी को,
अपनी झुलसती आग में,
कि आग में कि जिसकी तो,
चिंगारियां भी दाग दें
और सहमे-कुचले बदनों पर
गर्म छड़ें छुआती जाती है ।
ख़ामोश और भयानक है,
ये रात..

~सृष्टि

6 comments:

  1. This is amazing better than your last poem. You should start a blog of your own, a seperate hindi blog because you deserve one

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    1. Thanks a lot. :)
      As far as the Hindi blog is concerned, I'm currently happy with 'A random Indian teenager', because here one can read writeups in both Hindi and English.

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  2. Then you should start a seperate blog on blogger because your poems are simply amazing ��

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  3. U will definitely get more followers there

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  4. I am really glad to see that you are an ardent reader of this blog...nd thanks a lot for ur valuable suggestions sir :)

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