Thursday, 28 September 2017

ये इश्क है या अजूबा, समझ नहीं आता
नशा महबूब में है या शराब में, समझ नहीं आता
लोग कहतें हैं, ये मोहब्बत नहीं, हिमाकत है तेरी
नुक्स हममें है या लोगों में,
समझ नहीं आता..

समंदर

मेरा अल्लाह मुझसे कहता है- "मुकद्दर की स्याही पर अफ़सोस मत कर, वक्त का दरिया उसे बहा ले जाएगा अपने साथ.. और लिख जाएगा एक नई इबारत तेरे दर पर। इन मोतियों को मत कर ज़ाया, अभी इज़हार और इकरार, दोनों बाकी हैं.."
जी में आया कह डालूँ सब, पर मेरा अल्लाह था वो, कैसे भूल जाता अपना अद़ब?
मैंने कहा- "मुकद्दर की स्याही पर अफ़सोस करना मेरी फ़ितरत नहीं, मौला। न अपने दर पर लिखी उन इबारतों की परवाह है, जिन्हें तेरे वक्त का दरिया बनाता बिगाड़ता रहता है। और तू क्यों कह रहा है मुझसे ये सब? तू तो ख़ुद नचाता आया है कठपुतलियों को.."
अल्लाह ठठाकर हँस पड़ा। बोला- "तू सोचता है तू कहेगा नहीं तो मुझसे तेरी तपिश की इत्तला न होगी? क्यों भूल जाता है मतवाले, अल्लाह हूँ मैं.. जो तुझसे और तेरे जैसों से परे है। जब मौत से जूझता अपनी मोहब्बत को याद कर रहा था तू, तब तेरी जानबख़्शी मैंने की है। उस सनम को देखकर जो अह़सास होता है तुझे, वो मेरा दिया हुआ है। उसकी याद में जिन्हें बहाता है, वो आँसू मैंने बख़्शे हैं तुझे, मैंने! मैं ही जिम्मेदार हूँ, तेरी नफ़रत का भी, मोहब्बत का भी.. मैं ही परवरदिगार हूँ, इस दुनिया का भी, उस दुनिया का भी "।

मेरा दिल भर आया। क्या कहता मैं उससे? उसके बख़्शे अह़सास और आँसुओं का ही ख़्याल हो आया शायद। नज़रें झुकाकर इतना ही कहा-" तूने कभी राह भी तो न दिखाई मुझे। ख़ुद ही गिरता संभलता चलता आया हूँ इन रास्तों पर। याद भी नहीं कि तूने कभी हाथ थामकर कहा हो कि कह डाल मुरीदे, हल्का कर ले दिल। "

इस बार नज़रें अल्लाह ने चुराईं। बोला-" मैं ये न कहता हूँ कि तेरा हाथ न थामूँगा, पर जब तुझे मेरी ज़रूरत होगी तब। मैं ये ने कहता कि न सुनूँगा तेरी दास्तान, पर जब तू समंदर नहीं, दरिया बनकर दिखाएगा तब। दरिया बन, और बह जाने दे जो कुछ है तेरी गहराई में। मत कर इकट्ठा उसे समंदर की तरह। दरिया की ऊँची नीची लहरों में खोने दे ये आँसू, मत रख इन्हें समंदर की परतों में.. वरना सैलाब ले आएगा ये समंदर, हाँ, कह देता हूँ। मिट जाएगी हर इबारत हमेशा के लिए, बेवकूफ़! "
सुन रहा था मैं चुपचाप। ज़िरह करने की न चाह़त थी, न गुंजाइश। कहना तो बहुत कुछ था, पर मोहब्बत बड़ी कमबख्त होती है.. महबूब से कुछ कहने को ज़बान नहीं पिघलती, और अल्लाह से कुछ कहने को दिल कड़ा नहीं होता।
पर मुश्किल था रोक पाना ख़ुद को। सो न रोक सका। बोल ही पड़ा आख़िर-"मैं तुझे और तेरे हुक़्म को सलाम करता हूँ, पर मैं यह न कर सकूँगा। तू कहता है कि समंदर न बनूँ मैं? तूने बनाया है समंदर मुझे, मेरे मालिक! सच कह गया तू, तू ही जिम्मेदार है, मेरी नफ़रत का भी, मेरी मोहब्बत का भी.. आख़िर चला ही गया महबूब मेरा, और तूने ख़बर तक न होने दी मुझे.. अगर लड़ रहा था मौत से मैं, तो क्यों की मेरी जानबख़्शी? देख मुझे और बता, क्या हूँ मैं जिंदा? कहाँ था तू जब घुटनों पर झुक-झुक कर सिर्फ एक दुआ की थी कि रोक ले मेरे दिल-अजी़ज को.. जो इतनी ही फिक्र थी इबारतों के मिटा जाने की, तो तब क्यों न आया रह़म तुझे अली? अब विदा कर मुझे, दरिया न बन सकूँगा अब मैं। ये आँसू हैं जो इस समंदर की परतों में, इन्हें दरिया की लहरों में खो नहीं सकता मैं, इन्होंने ही बाँध रखी हैं साँसें  मेरी.. आ जाने दे सैलाब मुझमें, तब ये आँसू भी बिख़र जाएँगे और मेरी साँसें भी। मिट जाएँगी इबारतें भी, मैं भी.. तब शायद अपनी उस दुनिया में लिख दे तू उसे मेरे मुकद्दर की इब़ारत में.. "

मेरे अल्लाह की आँखों से आँसू टपक पड़े।

Monday, 25 September 2017

AISLE OF MEMORIES...

                                                                                                 BY-
                                                                                                    ADARSH SINHA
Walking across that aisle again,
Watching you smile, laugh and giggle,
Sitting and staring at your face,
Those moments of happiness we shared,
                                                            
Reliving those promises made by you,
This world which is still magical for me,
Where both of us are still the same,
This aisle which gives me solace,

Trying to search me on this aisle,
Living our moments once again,
Do you still remember me?
Do you walk this aisle too?

Trying to feel your presence again,
I am walking this aisle of memories!!!

Friday, 22 September 2017

रात

ख़ामोश वो रात भयानक है,
जब चुपचाप गिरती बारिश में
कुछ आँसू टूटकर मिल जाएँ,
जब टिम-टिम वो तारे ऊपर
एक-एक कर बुझ जाएँ ।
सन्नाटे को चीरकर,
कोई आवाज़ पहचानी-सी
कानों में शीशे के जैसे पिघल जाए
जब यादों के जंगल में पुकारे कोई,
और राही अनसुना कर बढ़ जाए ।
भयानक है वो रात,
जो अब भी ख़ामोश है
जो ठंडे हुए जिस्मों को,
रोआँ-रोआँ सहलाती है
और उठती-गिरती पलकों में
बूँदें बनकर जम जाती है
इस अँधेरे में चमकने की तो,
सूरज की भी ताब नहीं ।
जब एक हँसी के बदले में
सौ मौतें कोई मर जाए
है ये रात ख़ामोश,
और अब भी वैसी ही
भयानक!
जो साथ अपने मोहब्बत का,
ज़हर लिए फ़िरती है
और हर गुज़रते दिल को
छलनी-छलनी करती है
इस बेदर्द को, दर्द देकर न मिला चैन,
अब मेरे ही आशियाने पर
सुबहो-शाम ढलती है
देख़ती है मुझे बिलख़ता,
मगर उफ़ कम्बख़्त, उफ़ तक न करती है ।
जलाती है मुझे, हर किसी को,
अपनी झुलसती आग में,
कि आग में कि जिसकी तो,
चिंगारियां भी दाग दें
और सहमे-कुचले बदनों पर
गर्म छड़ें छुआती जाती है ।
ख़ामोश और भयानक है,
ये रात..

~सृष्टि

Tuesday, 19 September 2017

SAINTS OF MAYHEM...

                                                                                       BY-
                                                                                         ADARSH SINHA
India is known to be a country of diverse religions. A country so diverse with peaceful co-existence of such myriad religions has been tarnished by few who show intolerant tendencies.  Without knowing the true story they create chaos. There are some people who take advantage of this and become their messiah and self- proclaimed Godmen.
India is a country where nature and animals are worshipped, women are idolized and people have ultimate faith in the divine power. The countrymen with such an amazing history and culture blindly follow these messengers of God who ravenously befool them to fill their pockets and desires. This article of mine is dedicated to those self-proclaimed Godmen and their blind followers. I don’t want to offend anyone, so please read it at your own risk as it might hurt you or your values.
Whenever we land in trouble we look up and pray, pray to that almighty and run to holy places to seek peace and calmness. I haven’t seen that supreme power but still believe and worship him because I have been told by my elders about its existence and my elders have been told by their elders and this cycle has been continued since generations. The ironical part is… in today’s world, most of those preachers and messengers who tell us about God and his power may have not seen or experienced him themselves. So basically, people who follow these messengers blindly portray these people as their Gods. While doing so they forget about their worldly existence! They forget about the worldly vices that they can be filled with.
We not only believe these preachers of God, we blindly trust them. We send our children to these messengers hoping that they will instill some values inside them. May be our elders have still not realized the façade of values that these godmen carry. Even after knowing this, no one dares to question their theories, because we are scared that by doing so we will infuriate God and have to face the wrath of that supreme power. These self-proclaimed godmen have properties worth millions, but not even 50 percent is given to needy and poor, and we call them our “SEVAKS”. From getting V.I.P memberships to paying a hefty amount for their ashrams…we are just making a fool of ourselves and nothing else.
Even after seeing the disastrous consequences of our belief in those ASARAM BAPUS and RAM RAHIMS, we are not ready to learn our lessons. We need to understand that a criminal is a criminal, even if he portrays himself as a messenger or a godmen! We carry out candle marches and protests when a girl is raped and murdered and demand justice, and when finally justice is served…those same people wreak havoc!!! They burn buses, beat people and disrupt normal lives. How can they see their Godmen being sent behind bars? They really don’t care about those poor girls whose integrity was outraged. They least care about these shattered lives. What matters for them is their faith in these Godmen.
I wish if that supreme power is actually seeing all this brouhaha? I wish those blind followers could realize that the solutions to their problems lies inside them. These solutions can never be sought for through these messengers. We talk about progress and wish to adapt modernization. However we forget that modern thinking can only lead to this modernization.. We can never think of progressing if we keep on believing and portraying people as our Gods.

I am happy that our judicial system is taking steps in this direction and sending these self-proclaimed Godmen where they actually belong. While there are some people who still support these animals, there still are people who are actually speaking against this terrible practice and want to bring a change in the society. We don’t need these preachers to tell us what God wants from us because they themselves are unaware about the teachings in our holy books. We need to realize that we require to build our thoughts on rational, scientific and moral blocks. Otherwise they will continue to exploit us for their own good. I don’t know much about religions or that supreme power but I know this certainly that no religion or God would ever want us to kill or rape anyone!!! We need to realize this too and stop fighting amongst ourselves in the name of religion. It’s time for us to get together and show these saints of mayhem their real place, maybe then humanity and God, both will smile upon us…J

Sunday, 17 September 2017

तालीम

नंगे पैरों में जलते छाले,
सबको कहाँ मयस्सर हो पाते हैं।
खून के ये रंग, हर कूची में नहीं सिमट पाते हैं।
जिंदगी को आयाम जिंदगी नहीं, सफ़र के लोग कभी दे जाते हैं।
रुलाई में लिपटे संगीत को कितनी आसानी से अनसुना कर जाते हैं,
राह में आँखें खोलकर चलते भी, हर कदम पर ठोकर खाते हैं,
प्यासे बैठे एक बच्चे की तड़प, महसूस नहीं कर पाते हैं।
हर इंसान कोसता है उसे यहाँ, बदनसीबों की तादाद बहुत ज़्यादा है,
मैं तो चाहूँ हर इंसान पूछे उससे, तू क्यों इस मेहरबानी पर आमादा है।
पर न वो सवाल पूछते हैं, न आईना देख पाते हैं।
खूबसूरती को बस चंद चेहरों में ढूंढते रह जाते हैं,
वो क्या जाने कि परिंदे भी, हर घर में घोंसले नहीं बनाते हैं।
खुशनसीब होते हैं वो मल्लाह, जो समंदर के तूफ़ान देख पाते हैं,
खुले जिस्म पर कोड़े खाने का दर्द नसीब वाले भी नसीब से पाते हैं।
'जिंदा तो वो होते हैं, जो ज़माने के लिए तालीम बन जाते हैं।'

~सृष्टि 

Wednesday, 13 September 2017

I AM SORRY

                                                                                                           BY-
                                                                                                             ADARSH SINHA

Sitting alone lost in myself,
Staring at my small world,
Knitted with love and smiles,
It wasn't the same anymore,

Those people were not the same,
That bond wasn't the same,
With tears filled in my eyes,
Staring helplessly at my world,

Like someone counting his last breath,
My small world was crumbling down,
That inner ego laughing at my world,
Engulfing all my happiness and smile,

Left with only memories to haunt me,
Those golden moments we shared,
Defeated by our hollow pride again,
"I AM SORRY" was all it needed!!!

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